बुखार होने पर इसका प्रयोग किया जाता है | ज्वर के उपचार के लिए दारुहल्दी की जड़ का प्रयोग किया जाता है | दारुहल्दी की जड़ से तैयार किए काढ़े को 2 चम्मच की मात्रा में 3 बार पिलाने से ज्वर उतर जाता है।
दस्त होने इसकी जड़ का प्रयोग किया जाता है | दारुहल्दी की जड़ की छाल और सोंठ समभाग मिलाकर पीस लें। एक चम्मच की मात्रा दिन में 3 बार जल से सेवन कराने से दस्त लगने बंद हो जाते हैं।
दांतों को मजबूत बनाने और मसूढ़ों को ठीक करने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है | दारुहल्दी के फलों से बने काढ़े से गरारे करने से कुछ ही दिनों में मसूड़े मजबूत होंगे और दांत और मसूड़ों का दर्द दूर होगा।
पीलिया होने पर यह एक उपयोगी औषधि है | दारुहल्दी के काढ़े को बराबर की मात्रा में शहद मिलाकर 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम पिलाते रहने से शीघ्र लाभ मिलता है।
श्वेत प्रदर होने पर दारुहल्दी का प्रयोग किया जाता है | इसके लिए दारुहल्दी, दालचीनी और शहद समभाग मिलाकर एक चम्मच की मात्रा में 3 बार सेवन करने से रोग में लाभ मिलता है।
चोट लगने पर शरीर में सूजन हो जाती है | सूजन में दारुहल्दी उपयोगी औषधि है | दारुहल्दी का बनाया लेप 2-3 बार लगाने से सूजन की कठोरता दूर होकर दर्द में आराम मिलता है।
दारुहल्दी घाव लगने और चोट लगने पर लाभकारी है | दारुहल्दी का लेप चोट और घाव पर लगाने से खून जमता नहीं और शीघ्र ही भर जाता है।
दारुहल्दी की चूर्ण अंडे की सफेदी में समान मात्रा में मिलाकर 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित सेवन करते रहने से टूटी हड़ी शीघ्र जुड़ जाती है।
दारुहल्दी का तना, जड़ और फल समभाग में मिलाकर लेप तैयार करें। इसे गुदा और मस्सों पर लगाने से रोग में बहुत लाभ मिलता है।
दारुहल्दी, मुलेठी और शहद को समभाग में मिलाकर छालों पर बार-बार लगाने से कष्ट में आराम मिलता है।
दारुहल्दी का लेप आखें बंद कर पलकों पर लगाकर सोने से आखों का दर्द, लाली, किरकिराहट आदि कष्टों में लाभ होता है।